दो बल्ब B1 व B2, 500। वोल्ट के सोर्स के साथ सीरीज में कनैक्टेड है। बल्ब B1 की रेटिंग 220v/100w और बल्ब B2 की रेटिंग 330v/100w है तो बताइए कि इन दोनों बल्बों में से कौन-सा बल्ब अधिक प्रकाश देगा यानी ज्यादा ग्लो करेगा।

basis electrical question

चलिए इस प्रशन को हल करते है और पता लगाते है इन दोनों में से कौन सा बल्ब ज्यादा रोशनी देता है। हम जानते है कि सीरीज सर्किट में विधुत धारा का मान समान रहता है यानी दोनों बल्ब में धारा का मान एक समान रहेगा तो इसलिए सीरीज सर्किट में पावर निकालने के लिए P = i2R वाले सूत्र का प्रयोग करेंगे। इस सूत्र से हमें पता चल रहा है कि पावर, प्रतिरोध के समानुपाती है यानी अगर प्रतिरोध बढ़ेगा तो पावर भी बढ़ेगी और यदि प्रतिरोध कम होगा तो पावर भी कम होंगी। तो इस सूत्र से यह निष्कर्ष निकलता है कि दोनों बल्ब में से जिस बल्ब का प्रतिरोध ज्यादा होगा वहीं बल्ब अधिक प्रकाश देगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि जिसका भी प्रतिरोध ज्यादा होगा वो पावर भी ज्यादा कंज्यूम करेगा इसलिए वह ज्यादा रोशनी देगा।

अब बात आती है इनका प्रतिरोध निकालेंगे कैसे तो चलिए इनका प्रतिरोध भी निकाल लेते है। पहले हम B1 बल्ब का प्रतिरोध निकालतें है इस बल्ब की रेटिंग हमें पहले ही दी गई है वोल्टेज रेटिंग इसकी 220 वोल्ट है और पावर रेटिंग इसकी 100 वाट है। इसका प्रतिरोध निकालने के लिए हम पावर का P = V2/R वाले सूत्र का उपयोग करेंगे तो इस सूत्र में हम पावर और वोल्टेज का मान रखकर प्रतिरोध का मान निकाल लेंगे। R = 220×220/100 इसे हल करने पर R = 484 ओम प्राप्त होता है तो B1 बल्ब का प्रतिरोध तो हमने निकाल लिया अब दूसरे का निकालते हैं।

B2 बल्ब का प्रतिरोध निकालने के लिए हमें पहले ही परिपथ में इसकी रेटिंग दी गई है इसकी वोल्टेज 330 वोल्ट और पावर 100 वाट दी है। इसका प्रतिरोध भी उसी सूत्र से निकालेंगे। इस सूत्र वोल्टेज और पावर का मान रखने पर R = 330×330/100 इसे हल करने पर हमे R = 1089 ओम प्राप्त होता है यानी इस बल्ब का प्रतिरोध 1089 ओम है। 

दोनों बल्ब के प्रतिरोध का मान हमने निकाल लिया है और अब हम आसानी से बता सकते है कि कौन सा बल्ब ज्यादा रोशनी देगा। B1 बल्ब के प्रतिरोध का मान 484 ओम और B2 बल्ब के प्रतिरोध का मान 1089 ओम है। इससे पता चलता है कि B2 बल्ब का प्रतिरोध, B1 बल्ब के प्रतिरोध से अधिक है। इसलिए B2 बल्ब अधिक प्रकाश देगा और अपने अंदर अधिक पावर कंज्यूम करेगा।

बल्ब के प्रशन करते समय बहुत से छात्र गलती कर बैठते है उन्हें पता नहीं होता कि कौन से परिपथ में पावर का कौनसा सूत्र लगता है इसको याद रखने का एक आसान तरीका है बस आपको यह याद रखना है कि यदि बल्ब सीरीज में कनैक्टेड है तो आप जानते है कि सीरीज में करंट सेम होती है तो आपको पावर का वही सूत्र लगाना है जिसमें करंट आती हों तभी आप प्रशन को सही हल कर पाओगे और पता लगा पाओगे की कौन सा बल्ब ज्यादा रोशनी देगा।



Er. Chand दिसंबर 14, 2021
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 जैसा कि आपको इस पोस्ट के टाइटल को ही पढ़कर पता चल गया होगा कि आज हम किस विषय पर बात करने वाले है। जी हां दोस्तों आज हम डी सी मोटर कैसे काम करती है इस टोपिक पर बात करेंगे और डी सी मोटर के अन्दर जितने भी मेन पार्ट होते है वो कैसे काम करते है उन सभी के कार्य के बारे में जानेंगे तो चलिए शुरू करते है इस महत्वपूर्ण जानकारी को।


डी सी मोटर कैसे काम करती है

तो सबसे पहले जान लेते है डी सी मोटर का काम क्या होता है चाहे कोई भी मोटर हो ए सी या फिर डी सी सभी मोटर सेम काम होता है इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी को मकैनिकल ऐनर्जी में कन्वर्ट करना। मकैनिकल ऐनर्जी का मतलब होता है किसी भी चीज का चलना या घूमना यानी जो चीज घूमने लगती है या फिर चलने लगती है उसी को हम उसकी यांत्रिक ऊर्जा कहते है इसी प्रकार जब मोटर को इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी दी जाती है तो मोटर घूमने लगती है और मोटर की साफ्ट से किसी मशींन को जोड़ देते है इस प्रकार यह विधुत ऊर्जा मैकेनिकल ऐनर्जी में कन्वर्ट होकर मोटर की साफ्ट के द्वारा मशींन को इनपुट के रूप में दी जाती है।

अब बात करते है इसके कार्य सिद्धान्त की तो डी सी मोटर एक तरह से आकर्षण और प्रतिकर्षण के सिध्दांत पर कार्य करती है देखिए इसमें होता क्या है मोटर का जो ऊपर वाला भाग होता है उसे योक कहते है ठीक इसके निचे स्टेटर होता है जिसपर फील्ड वाइंडिंग की जाती है इसलिए इसमें ऊत्पन्न होने वाले फ्लक्स को फिल्ड फ्लक्स कहते है स्टेटर में जो फील्ड बनता है वह फिक्स होता है यानी यह एक पर्मानैंट मेग्नेट की तरह कार्य करता है इस फोटो में मोटर का जो भाग दिखाया गया है उसे स्टेटर कहते है साधारण भाषा में इस ढांचे को फील्ड बोलते हैं।

DC Motor kaise kam karti hai

इस फील्ड यानी स्टेटर के अन्दर रोटर को डाला जाता है रोटर पर आर्मेचर वाइंडिंग की होती है जैसे ही हम डी सी मोटर के आर्मेचर में सप्लाई देते है तो इसमें एक मैगनेटिक फ्लक्स बनता है यह फिल्ड स्टेटर के मैगनेटिक फील्ड के आकर्षण या प्रतिकर्षण करता है जिसके कारण डी सी मोटर घूमने लगती है।
एग्जाम की दृष्टि से अगर देखें तो इससे काफी सारे महत्वपूर्ण प्रशन बनते है जैसे की आपसे पूछा जा सकता है कि डी सी मोटर मे कौन सा नियम लागू होता है डी सी मोटर में फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम जिसे लैफ्ट हैंड रुल कहते है लागू होता है और डी सी जेनरेटर के अन्दर फ्लैमिंग राइट हैंड रुल लागू होता है।

DC Motor kaise kam karti hai

दोस्तों आपको फोटो में जो डी सी मोटर का पार्ट दिखाया गया है उसे आर्मेचर कहते है और इसे ही रोटर कहते है। इस पर आप लोगों को काफी सारे कंम्पोनेंट लगें दिखाई दे रहे होंगे जिनके बारे में हम जानेंगे।

आपकों इसके राइट साइड वाले हिस्से पर जो चीज लगी दिखाई दे रही है उसे बियरिंग कहते है अगर में आज से कुछ साल पहले की बात करु तो उस समय बियरिंग के स्थान पर बुस का उपयोग किया जाता था। लेकिन आज कल सभी डी सी मोटर के अन्दर बियरिंग कि ही प्रयोग किया जाता है। 

बियरिंग के बाद इस आर्मेचर पर जो चीज लगी है उसे कम्यूटेटर कहते है बहुत सारे लोगों एक कंफ्यूजन होता है कि कम्यूटेटर ए सी सप्लाई को डी सी सप्लाई में बदलता है या फिर डी सी को ए सी में कन्वर्ट करता है तो आपको में बता दूं के यह दोनों काम करता है। लेकिन अगर बात करें हम डी सी मोटर की तो इसमें यह डी सी सप्लाई को ए सी सप्लाई में कन्वर्ट करता है और जेनरेटर के अन्दर यह ए सी को डी सी में कन्वर्ट करता है यानी मोटर के अन्दर कम्यूटेटर एक इन्वर्टर की तरह और जेनरेटर के अन्दर एक रेक्टिफायर की तरह कार्य करता है। 

आपको इस चित्र में कम्यूटेटर के ऊपर कुछ लाइनें कटी दिखाई दे रही होगी इन्हें कम्यूटेटर सेगमेंट कहा जाता है इन सेगमेंट का काम ही डी सी को ए सी बनाना होता है जितने ज्यादा कम्यूटेटर में सिग्मेंट कटे होते है उतनी ही अच्छी हमें ए सी सप्लाई मिलती है।

कम्यूटेटर को हार्ड ड्राउन काॅपर का बनाया जाता है क्योंकि इससे कार्बन ब्रस टच रहते है अगर इसे खाली काॅपर का बना दें तो यह जल्दी ही घीस जायेगा जिससे कम्यूटेटर सेगमेंट को जल्दी जल्दी बदलना पड़ेगा इसलिए इसे हार्ड ड्राउन काॅपर का बनाया जाता है क्योंकि इससे बनें कम्यूटेटर सेगमेंट जल्दी नहीं घिसते है और इन सेगमेंट में हल्का सा गैप होता है जिसमें माइका इंसुलेशन को लगाया जाता है ताकि ये पूरे तरीके से इंसुलेटेड रहे और अच्छे से वर्क करें। कम्यूटेटर सेगमेंट को जिस चीज के ऊपर लगाया जाता है उसे बैकेलाइट कहते है।

अब बात करते है इसके आर्मेचर की इसको बनाने के लिए पतली पतली सीलीकाॅन स्टील की पत्तियों का उपयोग किया जाता है इसको पतली पत्ति से बनाने का मेन मकसद यह होता है क्योंकि इसमें कुछ लोसेस होते है जैसे हिस्टेरिसिस और एडी करंट लोस इन्हें कम करने के लिए ही आर्मेचर को सिलिकॉन स्टील की पतली पत्तियों को वार्निश करके बनाया जाता है। कम्यूटेटर के ऊपर स्लोट कटे होते है जिनमें वाइंडिंग को डालकर ऊपर से इंसुलेटिंग मटेरियल कागज या माइका की बारिक पत्तियों को लगा दिया जाता है ताकि वाइंडिंग बाहर न निकले और अन्दर अच्छे से फिक्स रहें।



Er. Chand दिसंबर 11, 2021
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 हैलो एवरी वन स्वागत है आप सब का हमारे इलैक्ट्रिकल टिप्स ब्लोग में आज का हमारा टोपिक है थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर का बेसिक सिध्दांत क्या होता है। इस मोटर का सिध्दांत सेम डी सी मोटर के समान ही होता है लेकिन इनमें फर्क सिर्फ इतना होता है डी सी मोटर में हम डी सी सप्लाई का प्रयोग करते है और सिंक्रोनस मोटर में हम ए सी सप्लाई का इस्तेमाल करते है। सिंक्रोनस मोटर दो प्रकार की होती है एक सिंगल फेज सिंक्रोनस मोटर और दूसरी थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर। सिंगल फेज सिंक्रोनस मोटर स्पेशल मशींन मोटर में आती है इसलिए हम यहां सिर्फ थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर के बारे में पढ़ेंगे।


थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर क्या होती है

थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर एक ऐसी मोटर होती है जो सिर्फ सिंक्रोनस स्पीड पर ही चलती है इसलिए इस मोटर को सिंक्रोनस मोटर नाम दिया गया है। इस मोटर के अन्दर दूसरी मोटरों की तरह दो मेन पार्ट होते है एक होता है स्टेटर यह मशीन का स्थिर रहने वाला भाग होता है जो एक स्थान पर रूका रहता है इसे शुद्ध हिंदी में स्थाता कहते है। दूसरा भाग मेन भाग रोटर होता है जैसा कि हमने दूसरी मोटरों में भी पढ़ा है रोटर मशीन का एक घूमने वाला भाग होता है जो मोटर के अन्दर रोटेट करता है।

इस मोटर के स्टेटर पर थ्री फेज वाइंडिंग होती है जो एक दूसरे से 120 डिग्री इलैक्ट्रिकली अपार्ट होती है चूंकि यह एक सिंक्रोनस मोटर है इसलिए यह सिंक्रोनस स्पीड पर ही रन करती है जिसकी गति Ns = 120f/p सूत्र द्वारा निकाली जा सकती है इस सूत्र में Ns का मतलब है सिंक्रोनस स्पीड, f का मतलब है सप्लाई फ्रिक्वेंसी और p मोटर को डिजाइन करते वक्त उसके रोटर पर बनाये गयें पोलो की संख्या होती है। इस सूत्र का उपयोग करके थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर की सिंक्रोनस स्पीड को आसानी से निकाला जा सकता है।

इस मोटर के स्टेटर में थ्री फेज वाइंडिंग में थ्री फेज सप्लाई दी जाती है इसकी तीनों वाइंडिंग से एक एक फेज कनैक्ट हो जाता है इसके रोटर को परमानेंट मैगनेट बनाना होता है ताकि रोटर स्टेटर के मैगनेटिक फील्ड के साथ लोक होकर सिंक्रोनस स्पीड पर रोटेट करें। इसलिए मोटर की साफ्ट पर एक डी सी शंट जेनरेटर को परमानेंटली लगा दिया जाता है और इससे थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर के रोटर की वाइंडिंग को सप्लाई दी जाती है ताकी वह एक स्थायी चुंबक की तरह व्यवहार करें और मोटर सिंक्रोनस स्पीड पर रन करने लगें।

थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर का बेसिक सिध्दांत

Three phase Synchronous motor basic concepts


जैसा इस फोटो में दिखाया गया है इसी के बेस पर हम थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर के बेसिक सिध्दांत को समझेंगे।
मान लीजिए यह हमारा एक स्टेटर है बेसिकली स्टेटर को हम एक वृत से दर्शातें है यह मोटर का एक स्थिर भाग होता है और इसके ऊपर थ्री फेज वाइंडिंग की जाती है। इन वाइंडिंग के तीन पोइंट होते है जिनमें सप्लाई कनैक्ट की जाती है और इनके बीच में एक सैलियंट पोल रोटर होता है। अब देखिए इस मोटर में होता क्या है जैसे ही हम स्टेटर की थ्री फेज वाइंडिंग को थ्री फेज सप्लाई देते है तो इस मोटर के स्टेटर में एक थ्री फेज रोटेटिंग मेग्नेटिक फील्ड ऊत्पन्न हो जाता है जो सिंक्रोनस स्पीड पर रोटेट करता है। अब इस स्टेटर के अन्दर हमारा रोटर होता है जो एक पर्मानैंट मेग्नेट की तरह वर्क करता है। तो इसके बाद होता क्या है रोटर के जिस पोल पर नाॅर्थ पोल बनता है वह स्टेटर के मैगनेटिक फील्ड के साउथ पोल के साथ मैगनेटिक लोकिंग बना लेता है और इसी प्रकार रोटर का साउथ पोल स्टेटर के मैगनेटिक फील्ड के नार्थ पोल के साथ मैगनेटिक लोकिंग बना लेता है इस तरह से रोटर भी सिंक्रोनस स्पीड पर घूमने लगता है इसी कारण इस मोटर को सिंक्रोनस मोटर कहते हैं।

रोटर को परमानेंट मैगनेट कैसे बनाते है

जैसा कि हमने अभी देखा है कि सिंक्रोनस मोटर में रोटर एक स्थायी चुंबक की तरह व्यवहार करता है तो अब हम यह देखेंगे कि इसको परमानेंट मैगनेट कैसे बनाते है सबसे पहले किसी भी लौहे की छड़ को चुंबक बनाने के लिए उस पर तांबे के तार की वाइंडिंग लपेटी जाती है और उसमें करंट को प्रवाहित किया जाता है जिससे वह छड़ विधुत चुंबक बन जाती है तो इस मोटर के रोटर को परमानेंट मैगनेट बनाने के लिए हम क्या करते है। इसके रोटर की वाइंडिंग को एक डी सी शंट जेनरेटर से जोड़ देते है जिससे वाइंडिंग में एक करंट फ्लो होने लगती है और रोटर के एक पोल प नाॅर्थ और दूसरे पर साउथ पोल बनता है डी सी सप्लाई होने के कारण यह पोल चेंज नहीं होते है यानी जिस तरह रोटर पर साउथ पोल बनता है वह साउथ ही रहता है और जिस तरह नाॅर्थ पोल बनता है वह नाॅर्थ ही रहता है इस प्रकार थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर में रोटर एक परमानेंट मैगनेट बन जाता है।

थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर की स्टार्टिंग

थ्री फेज सिंक्रोनस मोटर के रोटर की वाइंडिंग से एक डी सी शंट जेनरेटर जुड़ा रहता है अब जैसे ही स्टेटर में थ्री फेज सप्लाई दी जाती है तो स्टेटर में एक थ्री फेज रोटेटिंग मेग्नेटिक फील्ड इंड्यूज हो जाता है लेकिन स्टार्टिंग में रोटर रुका हुआ होता है जिसके कारण रोटर वाइंडिंग से कनैक्ट जेनरेटर में भी कोई वोल्टेज नहीं बनती है तो इस मोटर को सेल्फ स्टाॅर्ट बनाने के लिए इसकेे अन्दर एक अलग से स्कारल केज बार इंसर्ट की जाती है। जिससे यह मोटर एक इंडक्शन मोटर की तरह सेल्फ स्टाॅर्ट होती है लेकिन इंडक्शन मोटर कभी भी सिंक्रोनस स्पीड पर नहीं चलती है यह सिंक्रोनस गति से थोड़ी कम गति पर चलती है तो देखते है कि कैसे यह मोटर सिंक्रोनस स्पीड पर घूमती है।

तो देखिए क्या होता है जैसे ही इसकी स्टेटर वाइंडिंग में सप्लाई दी जाती है उसमें मैगनेटिक फील्ड बनता है अब फैराडे लाॅ के द्वारा जो हमने स्काइरल केज बार इंसर्ट की थी उनमें एक इ एम एफ इंड्यूज होता है जिससे केज बार में भी एक मैगनेटिक फील्ड बन जाता है जिसकी दिशा स्टेटर फील्ड की ओर होती है इस तरह से रोटर भी घूमने लगता है और उससे जुड़ा जेनरेटर भी घूमने लगता है इसके घूमते ही इसमें एक वोल्टेज उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण रोटर वाइंडिंग में एक करंट फ्लो होती है और रोटर एक परमानेंट मैगनेट बन जाता है इस तरह रोटर, स्टेटर के मैगनेटिक फील्ड से मैगनेटिक लोकिंग करके सिंक्रोनस स्पीड पर घूमने लगता है।




Er. Chand दिसंबर 08, 2021
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 दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम समझने जा रहे है इलेक्ट्रिसिटी का ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन कैसे होता है और कैसे बिजली हमारे घरों तक पहुंचती है। आप सभी जानते है कि सभी के घरों में विधुत सप्लाई आती है लेकिन यह नहीं जानते कि यह कैसे आती है और कैसे बनती है तो इस बारे आज हम इस पोस्ट में सब कुछ समझेंगे यानी के यहां पर आपको इलैक्ट्रिसिटी के ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन का पूरा ज्ञान मिलेगा। बस आपको इस पोस्ट को शुरू से लेकर आखिर तक बड़ी ध्यान पूर्वक पढना है।



जनरली बिजली का उत्पादन 11 केवी पर किया जाता है यानी पावर प्लांट के अन्दर 11 kv पर इलैक्ट्रिसिटी बनकर तैयार होती है अब इस बिजली को यहां से घरों तक या औधौगिक क्षेत्र तक पहुंचाने के लिए कई सब स्टेशन, ट्रांसमिशन टावर और विधुत चालकों का प्रयोग किया जाता है इन सभी की मदद से ही हम बिजली का उपयोग अपने घरों में कर पाते है आइये इसके बारे में अच्छे से समझते हैं।


इलेक्ट्रिसिटी का ट्रांसमिशन 

विधुत शक्ति केन्द्रों के अन्दर जब बिजली बनकर तैयार हो जाती है तो इसे आगे भेजने के लिए स्टेप अप करना पड़ता है ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अगर इलैक्ट्रिसिटी को 11 kv पर ही ट्रांसमिशन कर दिया जाये तो ट्रांसमिशन लाइन में लोस बहुत अधिक बढ़ जायेंगे क्योंकि इस वोल्टेज पर लाइन में करंट का मान बहुत अधिक होगा। यदि हमें इन लोसेस को कम करना है तो कंडक्टर का साइज बढाना पड़ेगा लेकिन अगर कंडक्टर का साइज बढायेगे तो इसका सीधा प्रभाव ट्रांसमिशन लाइन की कैपिटल कोस्ट पर पड़ता है जिससे प्रयोग किये जाने वाले चालकों की कोस्ट बढ़ जाती है और कंडक्टर का साइज बढ़ाने से चालकों का वजन भी बढ़ जाता है इसलिए विधुत का 11 केवी पर ट्रांसमिशन नहीं किया जाता है।

इसलिए इस 11 केवी को प्राइमरी ट्रांसमिशन सब स्टेशन पर वहां पर लगाये गए उच्चायी परिणामित्र (step up transformer) की मदद से 132 केवी, 220 केवी या 400 केवी में स्टेप अप कर दिया जाता है। अब यहां बिजली 400 केवी में बदल जाती है इतनी हाई वोल्टेज पर इलैक्ट्रिसिटी का ट्रांसमिशन इसलिए करते है क्योंकि जितनी अधिक वोल्टेज होती है करंट का मान उतना कम हो जाता है जिससे लाइन के अन्दर लोसेस बहुत कम हो जाते है यानी के जितनी पावर हम इनपुट में देते है उतनी ही हमें आउटपुट में मिल जाती है।

अब यह बिजली 400 केवी में बदलकर ट्रांसमिशन टावरों के द्वारा काफी लम्बी दूरी तय करके सेकेंडरी ट्रांसमिशन सब स्टेशन पर आती है जहा पर इस हाई वोल्टेज को 66 केवी या 33 केवी में स्टेप डाउन कर दिया जाता है


इलेक्ट्रिसिटी का डिस्ट्रिब्यूशन 

इसके बाद यह विधुत 66 केवी या 33 केवी में स्टेप डाउन होने के बाद प्राइमरी डिस्ट्रिब्यूशन सब स्टेशन पर पहुंचती है यहां इस सब स्टेशन पर अपचायी परिणामित्र (step down transformer) लगें होते है जो इस 66 या 33 केवी वोल्टेज को 11 केवी वोल्टेज में स्टेप डाउन कर देते है।

अब यह इलैक्ट्रिसिटी यहां से 11 केवी में स्टेप डाउन होकर हाई टेंशन डिस्ट्रिब्यूशन लाइन से होते हुए सेकेंडरी डिस्ट्रिब्यूशन सब स्टेशन तक आती है इस सब स्टेशन के अन्दर भी स्टेप डाउन डिस्ट्रिब्यूशन ट्रांसफॉर्मर होता है जो इस 11 केवी को 440 वोल्ट में स्टेप डाउन कर देता है। अब यहां से इस वोल्टेज को गांव या शहर कस्बे में रखें डिस्ट्रिब्यूशन ट्रांसफॉर्मर तक पहुंचाया जाता है जो इसे 220 वोल्ट में स्टेप डाउन कर देता है और यह वोल्टेज घरों तक पहुंचती है।

इसके बाद यह डिस्ट्रिब्यूशन ट्रांसफॉर्मर इस 440 वोल्ट को 220 वोल्ट में बदल देता है फिर वहां से यह 220 वोल्ट सीमेंट के पोल या लौहे के पोलो द्वारा घरों तक पहुंचती है फिर एक विधुत विभाग का कर्मचारी आकर जो आपके घर के नजदीक वाला पोल होता है उस पर से आपको एक बिजली का कनेक्शन दे देता है और आपके घर के बाहर एक बिजली का मीटर लगा देता है अब आप जितनी भी बिजली खर्च करते हो वो सब उस मीटर में काउंट होती रहती है इस प्रकार से इलेक्ट्रिसिटी का ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन किया जाता है।



Er. Chand दिसंबर 05, 2021
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 हैलो दोस्तो आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे कि MCB और RCCB क्या होता है और mcb or rccb me difference क्या है mcb का प्रयोग कहा किया जाता है और RCCB को किस जगह पर इस्तेमाल में लाया जाता है। इन दोनों का काम क्या होता है और किन किन चीजों से ये प्रोटेक्शन प्रदान करती है। इंटरव्यू के अन्दर भी आपसे इस पर प्रश्र पूछा जा सकता है कि mcb और rccb में क्या अंतर होता है तो इसे समझने के लिए आप इस पोस्ट बड़ी ही ध्यान पूर्वक पढ़िए तभी आप इन दोनों ही प्रोटेक्शन डिवाइस के बारे में अच्छे से समझ पायेंगे तो चलिए शुरू करते है आज के इस बहुत ही प्यारे टोपिक को।


mcb or rccb me difference


MCB क्या होता है

सबसे पहले हम mcb के बारे में बात करेंगे कि MCB क्या होता है। इस प्रोटेक्शन डिवाइस का पूरा नाम miniature circuit breaker होता है और यह केवल ओर केवल ओवर लोड और शाॅर्ट सर्किट पर ही सुरक्षा प्रदान करती है इसके अलावा यह ओर किसी चीज पर प्रोटेक्शन नहीं देती है।

चलिए इसको एक उदाहरण के द्वारा समझते है पहले ओवर लोड से प्रोटेक्शन कैसे करता है उसको समझते है। मान लीजिए आपके घर में एक 10 एम्पीयर रेटिंग की mcb लगी हुई है। यदि इसमें करंट 10 एम्पीयर तक फ्लो हो रहा है तब तक तो कोई चिंता की बात नहीं होती है लेकिन यदि किसी कारण इसमें करंट का मान दस एम्पीयर से थोडा भी ज्यादा हो जाता है यानी के 10.5 या 11 एम्पीयर हो जाता है तो आपके घर में लगी यह mcb तुरंत ही trip कर जाती है जिससे घर के अंदर लगें उपकरण और इलैक्ट्रिकल वायरिंग सुरक्षित बच जाती है तो इस तरह से एक MCB ओवर लोड से सुरक्षा प्रदान करती हैं।

अब शाॅर्ट सर्किट से प्रोटेक्शन कैसे करती है यह समझते है। मान लीजिए आपके घर में विधुत सप्लाई आ रही है और इसमें mcb लगा हुआ है इसमें से दो वायर आते है जो आगे विधुत बल्ब या विधुत मोटर तक जातें है। जिनमें से एक तार फेज का होता है और दूसरा न्यूट्रल का होता है। यदि किसी कारण इनमें से एक तार टूट कर दूसरे तार से मिल जाये यानी फेज वाला वायर टूटकर न्यूट्रल वायर से टच हो जाये तो दोनों तारों में शाॅर्ट सर्किट होने के कारण mcb तुरंत ही trip कर जाती है तो इस प्रकार यह शाॅर्ट सर्किट से भी सुरक्षा प्रदान करती हैं।

RCCB क्या होता है

इस सुरक्षा यंत्र का पूरा नाम residual current circuit breaker होता है। इसके अन्दर हमे काफी सारी सुविधाएं मिल जाती है जो कि mcb के अन्दर नहीं पाई जाती है इसका मुख्य कार्य परिपथ में विधुत धारा का बैलेंस जब बिगड़ जाता है तो उस कंडिशन में परिपथ को सप्लाई से पृथक करना होता है आसान से शब्दों में इसे ऐसे कह सकते है कि rccb का काम सर्किट में करंट को बैलेंस करना होता है।

चलिए इसको भी एक उदाहरण के द्वारा समझते है। मान लीजिए आपके पूरे घर में rccb लगा हुआ है आपका एक छोटा पांच या आठ साल का बच्चा है जिसने घर में लगें विधुत बोर्ड के सोकेट में उंगली दे दी है और उस सोकेट का स्विच भी ओन कंडिशन में है तो उस समय क्या होगा ? आपके घर की rccb तुरंत ही ट्रिप कर जायेंगी और आपका बच्चा करंट लगने से बच जायेगा। तो इस प्रकार से यह सुरक्षा प्रदान करती है। इसलिए इस प्रोटेक्शन डिवाइस को लगवाना बहुत जरूरी होता है क्योंकि बच्चों को पता नहीं होता है यदि किसी कारण वह कोई बिजली का तार पकड़ लेते है या फिर किसी विधुत बोर्ड के सोकेट में अपनी उंगली डाल देते है तो rccb उसे करंट लगने से पहले ही बचा लेगी इस तरह से आप और आपके बच्चे बिजली से सुरक्षित रहेंगे।

MCB और RCCB में अंतर

दोस्तों जैसा हमने अभी ऊपर जाना है कि mcb सिर्फ दो चीजों से सुरक्षा प्रदान करती है एक तो over load और दूसरा short circuit यानी के जब परिपथ में ओवर लोड की कंडीशन आयेगी या कहीं पर आपस में दो तारों में शाॅर्ट सर्किट हुआ हो तो इनसे ही यह प्रोटेक्शन करती है। और rccb एक ऐसी प्रोटेक्शन डिवाइस होती है जब परिपथ में करंट अनियंत्रित हो रहा हो यानी के जितना करंट फेज से आ रहा है उतना ही अगर हमें न्यूट्रल पर नहीं मिल रहा है तो उस समय यह सर्किट से सप्लाई को अलग कर देती है। यही mcb और rccb में अंतर होता है।
Er. Chand दिसंबर 02, 2021
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 हैलो फ्रेंड्स स्वागत है आपका मेरे इस ब्लोग साइट electricalengineering1994.blogspot.com पर दोस्तों आज का हमारा टोपिक है electrical je kaise bane मतलब how to become a electrical junior engineer. जेई का पद ग्रुप सी की पोस्ट में आता है जो की एक सरकारी नौकरी होती है। बहुत से स्टूडेंट्स का सपना होता है कि वे एक इंजीनियर बनें लेकिन अगर आप इंजिनियर न बनकर जूनियर इंजीनियर ही बन जाते है यह भी बहुत बड़ी बात है। ऐसा में इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जेई की पोस्ट भी काफी माननिय होती है। 
दोस्तों इस पोस्ट में electrical je kaise bane इससेे रिलेटेड बहुत सी बातें यहां जानेंगे जैसे 
• इलैक्ट्रिकल जेई क्या होता है।
• जेई कौन बन सकता है।
• जेई का कार्य क्या होता है।
• क्विलिफिकेशन क्या होनी चाहिए।
• एग्जाम कौन-सा देना होता है।
• उम्र सीमा कितनी होती है।
• सिलेबस क्या होता है।
• इलैक्ट्रिकल जेई का स्कोप कितना है।
• ज्वाइनिंग कहा मिलती है।
• सैलरी कितनी मिलती है।

electrical je kaise bane

जेई क्या होता है

JE का पूरा नाम junior engineer होता है जिसे हिंदी में कनिष्ठ अभियंता कहते हैं। जैसा इसके नाम से ही पता चलता है कि यह एक इंजीनियर का पद है यानी तकनीकी कार्य का सम्पादन इन्ही के द्वारा होता है। जेई अपने अण्डर रखने वाला डाटा अपने सीनियर को फोरवर्ड करते हैं। जेई क्या होता है इसे आप साधारण भाषा में इस तरह भी समझ सकते है कि किसी भी डिपार्टमेंट का वह पोस्ट होता है जो टेक्निकली मदद करते हुए उस विभाग के कार्यों को आगे ले जाता है।

• इलैक्ट्रिकल जेई कौन बन सकता है

इलैक्ट्रिकल जेई वे स्टूडेंट्स बन सकते है जिन्होने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा कोर्स किया हों आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि इंजीनियरिंग की कौनसी डिग्री या डिप्लोमा कोर्स करके जेई बन सकते है तो चलिए आप को इसके बारे में भी बता देते है वे सभी छात्र और छात्राएं जेई बन सकते है जिन्होने किसी भी ब्रांच से डिप्लोमा इंजीनियरिंग की हों।

• जेई का कार्य क्या होता है

जेई एक पोस्ट होती है जिसके नाम के आगे भलें ही जूनियर शब्द लगा हो परन्तु इसका काम बहुत बड़ा और जिम्मेदारी भरा होता है। जेई जिस विभाग में भी होते है ये उस विभाग एक मजबूत हिस्सा होते है ठीक उसी प्रकार जैसे इंसान के शरीर को खड़ा रखने में रीड की हड्डी की जो मेन भुमिका होती है उसी प्रकार किसी भी विभाग को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में एक जेई की भूमिका होती है। इनका कार्य खास और बहुत महत्वपूर्ण होता है ये सार्वजनिक कार्यों और परियोजनाओं को योजना बनाने से संबंधित डिजाइन और निर्माण करने का काम करते हैं। जब ये किसी विभाग में ज्वाइन करते है तो इनके कन्धो पर उस विभाग के सेक्शन का रिसपोन्ससिब्लिटी होता है जिसके तहत ये अपने अण्डर काम कर रहे कर्मियों द्वारा किए गए कार्य का सुपर विजन करते है और आगे के काम का पालन कैसे हो उसका सैटलमेंट भी करते हैं।

• इलैक्ट्रिकल जेई बनने के लिए क्वालिफिकेशन क्या हों

इलैक्ट्रिकल जेई बनने के लिए किसी सरकारी पाॅलिटेक्निक काॅलेज या फिर किसी प्राइवेट पाॅली टेक्निक काॅलेज से इलैक्ट्रिकल में डिप्लोमा होना अनिवार्य होता है अगर आप जेई बनना चाहते है तो आपके पास इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा का सर्टिफिकेट होना जरूरी है तभी आप एक जूनियर इंजीनियर बन सकते है

• इलैक्ट्रिकल जेई बनने के लिए एग्जाम कौन-सा देना होगा

दोस्तों जेई एक ऐसी पोस्ट है जिसकी वैकेंसी हर विभाग में देखने को मिलती है इसकी सेंट्रल लेवल और स्टेट लेवल पर बहुत सी भर्तियां निकलती है। हर डिपार्टमेंट अपने स्तर के अनुसार je की वेकेंसी निकालता है जिसकी परिक्षा को पास करके उस विभाग में जेई बन सकते हैं। इलैक्ट्रिकल जेई बनने के लिए पूरे भारत में काफी सारी परिक्षायें कराई जाती है जैसे रेलवे के अन्दर RRB डिपार्टमेंट द्वारा जेई की परीक्षा कराई जाती है और SSC डिपार्टमेंट द्वारा ssc je की वेकेंसी निकलती है। राज्यों के अनुसार भी इलैक्ट्रिकल जूनियर इंजीनियर की भर्ती निकाली जाती है।

• उम्र सीमा कितनी होती है

SSC के द्वारा जेई की जो परीक्षा ली जाती है उसमें उम्र की सीमा कम से कम 18 साल और अधिकतम 32 साल रखी गई है इसके अलावा sc/st के अन्तर्गत आने वाले उम्मीदवारों को उम्र की सीमा में 5 साल की छूट मिलती है और OBC केंडिडेट को 3 साल की छूट मिलती है और PwD वाले केंडिडेट को 10 से 15 साल की छूट मिलती है। 

• सिलेबस क्या होता है

किसी भी एग्जाम को पास करने के लिए उसके सिलेबस को अच्छी तरह से पढ़ना बहुत जरूरी होता है क्योंकि इसको पढ़कर ही आप एग्जाम को क्वालिफाई कर पाओगे। सिलेबस की जानकारी देने से पहले आपको बता दूं कि जेई की परीक्षा हर डिपार्टमेंट अपने स्तर पर कराता है इसलिए हो सकता है एक दूसरे विभाग के सिलेबस में थोड़ा बहुत अन्तर हों। यहां पर में आपको ssc द्वारा लिये जाने वाले एग्जाम का सिलेबस बता रहा हूं।
SSC जेई की परीक्षा दो भागों में कराता है जिसमें CBT-1 और CBT-2 के दो पेपर होते है पेपर वन में जनरल रिजनिंग, जनरल अवेयरनेस और जनरल इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रश्न होते है टोटल 200 नम्बर का पेपर होता है जिनको करने के लिए 2 घंटे का समय मिलता है। सेकेण्ड पेपर में आपकी इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के पूरे सिलेबस में से प्रश्नो को पूछा जाता है।

• इलैक्ट्रिकल जेई का स्कोप कितना है

यह एक ऐसा फील्ड है जिसके अन्दर स्कोप की अपार संभावनाएं है हकीकत यह भी है कि जितना कोम्पेटिशन दूसरे क्षेत्रो में है इसमें नहीं है। क्योंकि जेई की जितनी भी वेकेंसी निकलती है उसमें हर कोई अप्लाई नहीं कर सकता इसमें वही स्टूडेंट्स अप्लाई कर सकते हैं जिन्होंने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की हों यानी इस फील्ड में जाॅब की पूरी गारंटी रहती हैं।

• इलैक्ट्रिकल जेई को सैलरी कितनी मिलती है

SSC के माध्यम से जो छात्र जेई की पोस्ट पर ज्वाइन करते है उनको 40 हजार रुपए स्टार्टिंग में मिलते है इसके बाद साल के हिसाब से इनकी सैलरी बढ़ती जाती है और इसके साथ जेई को महंगाई भत्ता मतलब DA, चिकित्सा भत्ता, मकान भत्ता और वाहन भत्ता के साथ अन्य विशेष भत्ते भी मिलते हैं।

दोस्तों आज की इस पोस्ट में बस इतना ही उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी अगर आपको हमारी यह electrical je kaise bane की जानकारी अच्छी लगी है तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए और साथ ही साथ इसे अपने इलैक्ट्रिकल दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले।

Er. Chand नवंबर 30, 2021
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 Corona effect क्या होता है

जब भी आप किसी ट्रांसमिशन लाइन या ट्रांसमिशन टावर के पास से गुजरते होंगे तो आपको एक आवाज सुनाई दी होगी इस आवाज को हिजिंग साउण्ड कहते हैं इस आवाज के आने को ही corona effect कहा जाता है आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि कोरोना इफैक्ट क्यों होता है और साथ ही साथ पावर सिस्टम का हमारा बहुत महत्वपूर्ण टोपिक इसमें पढ़ेंगे जैसे कोरोना क्या होता है, कोरोना का फोर्मेशन कैसा होता है और ये किन किन फैक्टर पर निर्भर करता है और corona effect के लाभ और हानियां क्या क्या है।

यह प्रश्र आपके इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के इंटरव्यू के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस टोपिक में से जितनी भी ट्रांसमिशन लाइन के प्रोजेक्ट वाली कम्पनियों होती है वो इस टोपिक में से ही अकसर प्रश्नो को पुछा करती है।

कोरोना इफैक्ट क्या होता है

इसे हम एक आसान सी भाषा में समझते है अगर ट्रांसमिशन लाइन में ऐसी घटना हों जिसमें आपको violet glow देखने को मिलें या फिर transmission line से हिजींग साउण्ड सुनाई दे तो इसी घटना को कोरोना इफैक्ट कहते हैं। 

Corona effect in electrical in hindi


अब आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि कोरोना इफैक्ट क्यों होता है और कैसे होता है इसके बारे में आगे बताया गया है तो चलिए जान लेते है कि आखिर ये इफैक्ट क्यों होता है।

ट्रांसमिशन लाइन की जो तार होती है वह हवा में लटकी रहती है मतलब कि जो transmission line की कंडक्टर होती है उसके चारों ओर वातावरण में हवा रहती है। यहां पर यह एयर एक डाइलैक्टिक मिडियम की तरह व्यवहार करती है यानी के यह एक इंसुलेटर की भांति काम करती है। लेकिन प्रैक्टिकली जो ये वायु होती है वह परफैक्ट इंसुलेटर नहीं होती है क्योंकि हवा के अन्दर काफी सारी अल्ट्रा वायलेट किरणें मौजूद होती है जिसके कारण इसमें आयनित कण उपस्थित रहते है जैसे फ्री इलैक्ट्रोन, पोजिटिव आयन और न्यूट्रल मोलिक्यूल इसमें होते हैं।

इसी वजह से एयर एक परफेक्ट विधुत रोधी नहीं होती है वायु की डायलेक्ट्रीक स्ट्रैंथ नाॅर्मल दाब और ताप पर 30 kv/cm होती है यानी अगर एक सेंटीमीटर वायु में वोल्टेज 30 kv/cm से अधिक वोल्टेज पास होती है तो हवा आयनाइज्ड हों जाती है उसके अंदर से करंट बहने लगती है इसके एयर का ब्रेकडाउन कहते हैं।

जो हाई वोल्टेज की लाइन होती है उनके चारों ओर इलैक्ट्रिक फील्ड होता है इस फील्ड की वजह से कंडक्टर में पोटेंशियल ग्रेडिएंट की कंडीशन ऊत्पन्न हो जाती है। मान लीजिए एक 132kv की लाइन है तो हाई वोल्टेज होने के कारण कंडक्टर के आजू बाजू भी कुछ वोल्टेज होंगी, जैसे जैसे चालक से दूर जायेंगे वैसे वैसे वोल्टेज कम होती जायेगी, तो इस इस दूरी के हिसाब से वोल्टेज का कम होना ही पोटेंशियल ग्रेडिएंट कहलाता हैं।

मान लीजिए हमारे पास 132kv लाइन की दो कंडक्टर है जिनके चारों ओर इलैक्ट्रिक फील्ड है जिसकी वजह से पोटेंशियल ग्रेडिएंट की कंडीशन ऊत्पन्न होगी और लाइन के आजू बाजू हवा में फ्री इलैक्ट्रोन और आयन मौजूद होंगे जैसे ही इस हाई वोल्टेज लाइन में 132kv की सप्लाई आती है तो कंडक्टर के आस पास की एयर आयनाइज्ड हों जाती है यानी के जो हवा में फ्री इलैक्ट्रोन होते है वो आपस में टकराने लगते है और उनमें आर्क उत्पन्न हो जाती है (यही आर्क हमें वायलेट ग्लो के रूप में दिखाई देती है) और इसी के कारण हिजींग साउण्ड ऊत्पन्न हो जाता है और कंडक्टर में वाइर्ब्रेशन भी होने लगता है यह घटना बरसात के मौसम में अधिक देखने को मिलती हैं क्योंकि बारिस के दिनों में हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाती है इसी कारण बरसात के दिनों में कोरोना इफैक्ट ज्यादा देखने को मिलता है।

Corona effect से संबंधित दो टर्म बहुत महत्वपूर्ण होते है जिनके बारे में जानना जरूरी होता है पहला होता है disruptive critical voltage यह वह न्यूनतम वोल्टेज होता है जिस पर कंडक्टर के आस पास की एयर आयनाइज्ड हों जाती है और दूसरा होता है visual critical voltage यह वह न्यूनतम वोल्टेज होता है जिस पर कोरोना इफैक्ट ग्लो करता है यानी ट्रांसमिशन लाइन के कंडक्टर की ओर देखने पर वाइलेट ग्लो दिखाई देने लगता है।

कोरोना इफैक्ट को प्रभावित करने वाले फैक्टर

• सप्लाई वोल्टेज

कोरोना का इफैक्ट 30kv से कम की ट्रांसमिशन लाइन में देखने को नहीं मिलता है यह प्रभाव 30kv से ऊपर की लाइनों में ही देखा जाता है क्योंकि जब सप्लाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन में तीस केवी से अधिक हो जाती है तो कंडक्टर के आस पास की एयर का ब्रेकडाउन हो जाता है जिससे चालक के आजू बाजू की वायु आयनाइज्ड हों जाती है अब जैसे जैसे वोल्टेज बढ़ती जाती है वैसे वैसे कोरोना इफैक्ट भी बढ़ता जाता है।

• सप्लाई आवृत्ति

ट्रांसमिशन लाइन में जो सप्लाई होती है उसकी आवृत्ति कोरोना लोस के समानुपाती होती है यानी के जितनी ज्यादा आवृत्ति को बढायेगे उतना ही अधिक transmission line के अन्दर corona effect ज्यादा होगा।

• चालकों के बीच की दूरी

सिरोपरी लाइनों में प्रयोग कियें जाने वाले चालकों के बीच की दूरी कोरोना इफैक्ट के व्यूत्क्रमानुपाती होती है इसका मतलब यह हुआ कि कंडक्टर के बीच में जितनी अधिक दूरी होगी कोरोना इफैक्ट उतना ही कम होगा और यदि चालकों के बीच दूरी कम रखी जायेगी तो corona effect भी उतना ही अधिक होगा।

वातावरण पर

कोरोना इफैक्ट वातावरण पर भी बहुत अधिक निर्भर करता है बरसात के मौसम में कोरोना इफैक्ट अधिक देखने को मिलता है जबकि गर्मी के दिनों में इसका प्रभाव कम दिखता है क्योंकि बारिश के मौसम में हवा में नमी ज्यादा होती है जिसकी वजह से वायु जल्दी आयनाइज्ड हों जाती है जिससे हिजींग साउण्ड अधिक सुनाई देता है। और गर्मी के मौसम में हवा में नमी की मात्रा कम होती है जिससे वायु कम आयनाइज्ड होती है जिससे हिजींग साउण्ड कम आती है।

कोरोना इफैक्ट की हानियां

• कोरोना की वजह से पावर लोस होता है जो कि हिट, लाइट, साउण्ड और गैस के रूप में व्यर्थ होती है और इसके कारण ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता भी कम हो जाती है।

• कोरोना इफैक्ट की वजह से ओजोन गैस बनती है जिससे कंडक्टर पर कार्बन बनने लगता है और transmission line के चालक की life भी कम हो जाती है।

• ट्रांसमिशन लाइन में जो सप्लाई होती है वह एक शुद्ध ए सी सप्लाई होती है लेकिन कोरोना इफैक्ट के कारण इसमें अन साइनोसोडियल सिग्नल ऊत्पन्न हो जाते हैं।

Corona effect के लाभ

कोरोना इफैक्ट के कारण कंडक्टर के आस पास की एयर एक चालक की तरह काम करने लगती है जिससे कंडक्टर का क्षेत्रफल एक तरह से बढ़ जाता है। यदि कभी लाइन के अन्दर किसी कारणवश बहुत अधिक करंट बहने लगे तो उस कंडिशन में कंडक्टर खराब होने से या टूटने से बच जाता है। यह कोरोना इफैक्ट की एक अच्छी बात भी होती है।

कोरोना इफैक्ट को कम करने के तरीके

• ट्रांसमिशन लाइन में प्रयोग किये जाने वाले कंडक्टर का साइज बढ़ाकर इस प्रभाव को कम किया जा सकता है।

• transmission line में बंडल कंडक्टर का उपयोग करके भी कोरोना इफैक्ट को काफी हद तक नैग्लेट किया जा सकता है।

• corona effect को कम करने का एक तरीका और है इसे corona ring का प्रयोग करके भी कर कर सकते हैं।


Er. Chand नवंबर 27, 2021
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