dc motor working principle in hindi : डीसी मोटर का क्या काम होता है?

 जैसा कि आपको इस पोस्ट के टाइटल को ही पढ़कर पता चल गया होगा कि आज हम किस विषय पर बात करने वाले है। जी हां दोस्तों आज हम डी सी मोटर कैसे काम करती है इस टोपिक पर बात करेंगे और डी सी मोटर के अन्दर जितने भी मेन पार्ट होते है वो कैसे काम करते है उन सभी के कार्य के बारे में जानेंगे तो चलिए शुरू करते है इस महत्वपूर्ण जानकारी को।


डी सी मोटर कैसे काम करती है

तो सबसे पहले जान लेते है डी सी मोटर का काम क्या होता है चाहे कोई भी मोटर हो ए सी या फिर डी सी सभी मोटर सेम काम होता है इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी को मकैनिकल ऐनर्जी में कन्वर्ट करना। मकैनिकल ऐनर्जी का मतलब होता है किसी भी चीज का चलना या घूमना यानी जो चीज घूमने लगती है या फिर चलने लगती है उसी को हम उसकी यांत्रिक ऊर्जा कहते है इसी प्रकार जब मोटर को इलैक्ट्रिकल ऐनर्जी दी जाती है तो मोटर घूमने लगती है और मोटर की साफ्ट से किसी मशींन को जोड़ देते है इस प्रकार यह विधुत ऊर्जा मैकेनिकल ऐनर्जी में कन्वर्ट होकर मोटर की साफ्ट के द्वारा मशींन को इनपुट के रूप में दी जाती है।

अब बात करते है इसके कार्य सिद्धान्त की तो डी सी मोटर एक तरह से आकर्षण और प्रतिकर्षण के सिध्दांत पर कार्य करती है देखिए इसमें होता क्या है मोटर का जो ऊपर वाला भाग होता है उसे योक कहते है ठीक इसके निचे स्टेटर होता है जिसपर फील्ड वाइंडिंग की जाती है इसलिए इसमें ऊत्पन्न होने वाले फ्लक्स को फिल्ड फ्लक्स कहते है स्टेटर में जो फील्ड बनता है वह फिक्स होता है यानी यह एक पर्मानैंट मेग्नेट की तरह कार्य करता है इस फोटो में मोटर का जो भाग दिखाया गया है उसे स्टेटर कहते है साधारण भाषा में इस ढांचे को फील्ड बोलते हैं।

DC Motor kaise kam karti hai

इस फील्ड यानी स्टेटर के अन्दर रोटर को डाला जाता है रोटर पर आर्मेचर वाइंडिंग की होती है जैसे ही हम डी सी मोटर के आर्मेचर में सप्लाई देते है तो इसमें एक मैगनेटिक फ्लक्स बनता है यह फिल्ड स्टेटर के मैगनेटिक फील्ड के आकर्षण या प्रतिकर्षण करता है जिसके कारण डी सी मोटर घूमने लगती है।
एग्जाम की दृष्टि से अगर देखें तो इससे काफी सारे महत्वपूर्ण प्रशन बनते है जैसे की आपसे पूछा जा सकता है कि डी सी मोटर मे कौन सा नियम लागू होता है डी सी मोटर में फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम जिसे लैफ्ट हैंड रुल कहते है लागू होता है और डी सी जेनरेटर के अन्दर फ्लैमिंग राइट हैंड रुल लागू होता है।

DC Motor kaise kam karti hai

दोस्तों आपको फोटो में जो डी सी मोटर का पार्ट दिखाया गया है उसे आर्मेचर कहते है और इसे ही रोटर कहते है। इस पर आप लोगों को काफी सारे कंम्पोनेंट लगें दिखाई दे रहे होंगे जिनके बारे में हम जानेंगे।

आपकों इसके राइट साइड वाले हिस्से पर जो चीज लगी दिखाई दे रही है उसे बियरिंग कहते है अगर में आज से कुछ साल पहले की बात करु तो उस समय बियरिंग के स्थान पर बुस का उपयोग किया जाता था। लेकिन आज कल सभी डी सी मोटर के अन्दर बियरिंग कि ही प्रयोग किया जाता है। 

बियरिंग के बाद इस आर्मेचर पर जो चीज लगी है उसे कम्यूटेटर कहते है बहुत सारे लोगों एक कंफ्यूजन होता है कि कम्यूटेटर ए सी सप्लाई को डी सी सप्लाई में बदलता है या फिर डी सी को ए सी में कन्वर्ट करता है तो आपको में बता दूं के यह दोनों काम करता है। लेकिन अगर बात करें हम डी सी मोटर की तो इसमें यह डी सी सप्लाई को ए सी सप्लाई में कन्वर्ट करता है और जेनरेटर के अन्दर यह ए सी को डी सी में कन्वर्ट करता है यानी मोटर के अन्दर कम्यूटेटर एक इन्वर्टर की तरह और जेनरेटर के अन्दर एक रेक्टिफायर की तरह कार्य करता है। 

आपको इस चित्र में कम्यूटेटर के ऊपर कुछ लाइनें कटी दिखाई दे रही होगी इन्हें कम्यूटेटर सेगमेंट कहा जाता है इन सेगमेंट का काम ही डी सी को ए सी बनाना होता है जितने ज्यादा कम्यूटेटर में सिग्मेंट कटे होते है उतनी ही अच्छी हमें ए सी सप्लाई मिलती है।

कम्यूटेटर को हार्ड ड्राउन काॅपर का बनाया जाता है क्योंकि इससे कार्बन ब्रस टच रहते है अगर इसे खाली काॅपर का बना दें तो यह जल्दी ही घीस जायेगा जिससे कम्यूटेटर सेगमेंट को जल्दी जल्दी बदलना पड़ेगा इसलिए इसे हार्ड ड्राउन काॅपर का बनाया जाता है क्योंकि इससे बनें कम्यूटेटर सेगमेंट जल्दी नहीं घिसते है और इन सेगमेंट में हल्का सा गैप होता है जिसमें माइका इंसुलेशन को लगाया जाता है ताकि ये पूरे तरीके से इंसुलेटेड रहे और अच्छे से वर्क करें। कम्यूटेटर सेगमेंट को जिस चीज के ऊपर लगाया जाता है उसे बैकेलाइट कहते है।

अब बात करते है इसके आर्मेचर की इसको बनाने के लिए पतली पतली सीलीकाॅन स्टील की पत्तियों का उपयोग किया जाता है इसको पतली पत्ति से बनाने का मेन मकसद यह होता है क्योंकि इसमें कुछ लोसेस होते है जैसे हिस्टेरिसिस और एडी करंट लोस इन्हें कम करने के लिए ही आर्मेचर को सिलिकॉन स्टील की पतली पत्तियों को वार्निश करके बनाया जाता है। कम्यूटेटर के ऊपर स्लोट कटे होते है जिनमें वाइंडिंग को डालकर ऊपर से इंसुलेटिंग मटेरियल कागज या माइका की बारिक पत्तियों को लगा दिया जाता है ताकि वाइंडिंग बाहर न निकले और अन्दर अच्छे से फिक्स रहें।



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