डी सी मोटर क्या होती है | dc motor in hindi

                    डी सी मोटर क्या होती है

डी सी मोटर (dc motor) एक ऐसी मशीन होती है जिसके द्वारा विधुत ऊर्जा (electrical energy) को यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में परिवर्तित किया जाता है ।ऐसी मोटर को डी सी मोटर कहते हैं । इन मोटरों का उपयोग हम कई जगह करते हैं जैसे traction system में, क्रेन में, elevator और लिफ्ट में, ऐसी काफ़ी जगहों पर हम डी सी मोटर का उपयोग करते हैं । आगे अब dc motor in hindi पर बिस्तार से चर्चा करेंगे।
   

                    

   डी सी मोटर का कार्य सिद्धान्त (working principle of dc motor)


V  = डी सी  सप्लाई वोल्टेज
 I  =  प्रत्यावर्ती धारा जो चालक में बहती है
 B  =  चुम्बकीय क्षेत्र जिसकी दिशा नोर्थ से साउथ की ओर है
C1,C2  =  कम्यूटेटर
B1,B2  =  ब्रस
N  =  नोर्थ पोल
S  =  साउथ पोल

जब हम डी सी मोटर को डी सी सप्लाई देते है तो इस डी सी सप्लाई को दिकपरिवर्तक (commutator) ऐ सी सप्लाई में परिवर्तित कर देता है । अब डी सी मोटर के चालकों में जो धारा बहेगी वह प्रत्यावर्ती धारा (AC current) होगी । चालक में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित होने के कारण चालक में एक फ्लक्स उत्पन्न होगा इस फ्लक्स को चुम्बकीय क्षेत्र कट करेगा जिससे फ्लक्स दर परिवर्तित होने के कारण चालक में एक विधुत वाहक बल (electro motive force, EMF) उत्पन्न होगा । इस विधुत वाहक बल के कारण चालक पर एक बल लगेगा । इस बल के लगने के कारण हमारी dc motor in hindi घुमने लगती हैं । इस बल की दिशा फ्लेमिगं के बायं हाथ के नियम ( flaming laft hand rull ) के द्वारा निकाली जाती हैं ।

डी सी मोटर के बारे में कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है जो मैंने नीचे बताई है ।

• दिकपरिवर्तक (commutator) का काम डी सी सप्लाई को ऐ सी सप्लाई में परिवर्तित करना होता हैं ।
• डी सी मोटर में एक समान टाॅर्क उत्पन्न करने के लिए धारा की दिशा पोल के साथ बदलनी चाहिए । यदि ऐसा नहीं होगा तो resultant torqe zero हो जायेगा ।
• चालक मैं धारा की दिशा लगातार बदलती रहती है इसलिए चालक मैं हमेशा प्रत्यावर्ती धारा ही होगी ।
• मोटर में चालक पर लगने वाला बल (torqe) रोटर के घूमने की दिशा में ही लगता है ।
• डी सी मोटर में ब्रस stasnory होते है और commutator घूमता (rotating) हैं ।
• डी सी मोटर एक invertor की तरह काम करता हैं ।

डी सी मोटर के प्रकार ( types of dc motor in hindi ) 

डी सी मोटर दो प्रकार की होती है 
(1) सेपरेटली एक्साइटेड
(2) सेल्फ एक्साइटेड
सेल्फ एक्साइटेड मोटर तीन प्रकार की होती हैं

(a) डी सी शंट मोटर

डी सी शंट मोटर लगभग एक समान गति पर चलने वाली मोटर होती है। इस मोटर को शंट मोटर इसलिए कहते है क्योंकि फिल्ड वाइंडिंग को आर्मेचर के शंट में लगाते है। यह शंट वाइंडिंग पतले चालकों की बनी होती है इसलिए इसका प्रतिरोध उच्च होता है। इस वाइंडिंग में जो वोल्टेज होती है वह सप्लाई वोल्टेज के समान होती है। इस शंट वाइंडिंग में बहने वाली धारा रेटेड धारा की लगभग 4 से 5 प्रतिशत होती है। इस मोटर का उपयोग उन स्थानों पर किया जाता है जहां एक समान गति की आवश्यकता होती है।

इसे भी देखें : dc motor questions and answers in hindi

(b) डी सी सीरीज मोटर

डी सी सीरीज मोटर एक परिवर्तित गति पर चलने वाली मोटर है। इस मोटर में शुरुआत में बहने वाली धारा रेटेड धारा की 4 से 5 गुना अधिक होती है इसलिए इस मोटर का स्टार्टिगं टाॅर्क बहुत अधिक होता है।डी सी सीरीज मोटर को कभी भी बिना भार (no load) के नहीं चलानी चाहिए। क्योंकि बिना भार के इसकी गति बहुत तेज होती है जो कि बहुत ख़तरनाक होती है। इस मोटर को सीरीज मोटर इसलिए कहते है क्योंकि फिल्ड वाइंडिंग को आर्मेचर के सीरीज में कनैक्ट करते है। यह वाइंडिंग मोंटे तार से बनायी जाती है। इसलिए इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है। इसमें बहने वाली धारा रेटेड धारा के बराबर होती है।

(c) कम्पाउडं मोटर

इस मोटर में दो फिल्ड वाइंडिंग का प्रयोग किया जाता है। एक फिल्ड वाइंडिंग को आर्मेचर के सीरीज में कनैक्ट किया जाता है और दूसरी फिल्ड वाइंडिंग को आर्मेचर के शंट में लगाया जाता है। कम्पाउडं मोटर दो प्रकार की होती है। कम्यूलेटिव कम्पाउडं मोटर और डिफरेंशियल कम्पाउडं मोटर। कम्यूलेटिव कम्पाउडं मोटर में दोनों फिल्ड वाइंडिंग का फ्लक्स एक ही दिशा में होता है और डिफरेंशियल कम्पाउडं मोटर में दोनों फिल्ड वाइंडिंग का फ्लक्स अलग अलग दिशा में होता है। 

डिफरेंशियल कम्पाउडं मोटर को स्टार्ट करने के लिए इसकी सीरीज फिल्ड वाइंडिंग को शाॅर्ट कर दिया जाता है। और जब मोटर रेटेड स्पीड के आस पास पहुंच जाती है तो इसकी सीरीज फिल्ड वाइंडिंग को सर्किट से वापस जोड़ दिया जाता है। यानि इस मोटर को एक शंट मोटर की तरह स्टार्ट किया जाता है। यहां पर हम जानकारी ले रहे हैं dc motor in hindi के बारे में

डिफरेंशियल कम्पाउडं मोटर एक समान गति (constant speed) पर चलने वाली मोटर है। इसकी गति में जरा सा भी वैरियेशन नहीं आता है। 

डी सी मोटर में प्रयोग होने वाली ब्रेकिंग

डी सी मोटर में तीन तरह की ब्रेकिंग का प्रयोग किया जाता है ।
(1) रिजेनरेटिव ब्रेकिंग
(2) प्लगिंग
(3) रेहॉस्टैटिक ब्रेकिंग या डायनैमिक ब्रेकिंग

(1) रिजेनरेटिव ब्रेकिंग

रिजेनरेटिव ब्रेकिंग में आर्मेचर वोल्टेज (Ea) के मान को सप्लाई वोल्टेज से अधिक किया जाता है जिससे आर्मेचर करंट की दिशा बदल जाती है और विधुत वाहक बल की दिशा भी बदल जाती हैं। इस प्रकार डी सी मोटर एक जेनरेटर की तरह काम करने लगता है। ओर जेसे ही मोटर जेनरेटर की तरह घुमना शुरू करती है उसी समय हम मोटर की सप्लाई को बन्द कर देते है और मोटर रुक जाती हैं।

इस विधि में हम रोटर की गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल कर सप्लाई सोर्स को वापस कर दिया जाता हैं।
सीरीज मोटर में रिजेरेटिव ब्रेकिंग का प्रयोग नहीं किया जाता है।

(2) प्लुगिंग (plugging)

इस विधि में सप्लाई टर्मिनल को आपस में बदल दिया जाता है और फिल्ड वाइंडिंग में हम कोई बदलाव नहीं करते हैं।जिसकी वजह से आर्मेचर करंट की दिशा बदल जाती हैं और विधुत वाहक बल की दिशा भी बदल जाती हैं।सप्लाई टर्मिनल बदलने से धारा का मान बहुत अधिक बढ़ जाता है। धारा को एक समान रखने के लिए आर्मेचर सर्किट में एक ब्राहा प्रतिरोध (external resistance) जोड़ा जाता हैं।

यदि हम dc motor in hindi की स्पीड शून्य होने के बाद भी सप्लाई को कनेक्ट रहने दें तो मोटर दूसरी दिशा में घुमने लगेगी।
प्लुगिगं में इलैक्ट्रिकल पावर मुख्य सप्लाई से ली जाती है और यांत्रिक पावर साफ्ट से ली जाती हैं।इन दोनों पावर का सम रोटर सर्किट में ऊष्मा के रूप में खर्च होता है जिसके कारण तापमान बहुत बढ़ जाता हैं।
डी सी मशीन में प्लुगिगं दो तरिके से की जाती है
आर्मेचर पोलैरिटी को उल्टा करके
फिल्ड वाइंडिंग की पोलैरिटी को उल्टा करके

(3) रिहोस्टेटिक या डायनैमिक ब्रेकिंग

इस विधि में सप्लाई को बन्द करके एक प्रतिरोध लगा दिया जाता है जिससे आर्मेचर करंट की दिशा बदल जाती है और उसमें उत्पन्न विधुत वाहक बल की दिशा भी बदल जाती हैं। इस प्रकार मोटर रुक जाती हैं।
इस विधि में तेज़ गति से ब्रेकिंग करने के लिए स्पीड कम होने के साथ-साथ भार प्रतिरोध को भी कम कर दिया जाता हैं जिससे आर्मेचर करंट constant रहें।
इन ब्रेकिंग विधियों में सबसे दक्षतापूर्ण विधि रिजेनरेटिव ब्रेकिंग विधि हैं। और सबसे तेज गति से ब्रेकिंग करने वाली विधि प्लुगिगं विधि हैं। और सबसे सस्ती ब्रेकिंग विधि रिजेनरेटिव ब्रेकिंग विधि हैं।

dc motor in hindi की गति नियंत्रित करने की विधियां

यहां में आपको बताउंगा कि डी सी मोटर की गति नियंत्रित कैसे कर सकते है। डी सी मोटर की गति तीन चीजों पर निर्भर करती है।फिल्ड फ्लक्स,आर्मेचर प्रतिरोध और आर्मेचर वोल्टेज इन तीन चीजों को नियंत्रित करके डी सी मोटर की गति नियंत्रित कर सकते है। 

(1) फिल्ड फ्लक्स को नियंत्रित करके

इस विधि का प्रयोग केवल मोटर की गति को बढ़ाने के लिए करते है।के। क्योंकि फ्लक्स को ज्यादा बढ़ाने से कोर सैचुरेटेड हो जाती है जिससे कोर के टूटने का खतरा रहता है। जब फ्लक्स को कम करते है तो आर्मेचर वोल्टेज भी कम हो जाती है। आर्मेचर वोल्टेज कम होने से आर्मेचर धारा बढ़ जाती है। जिससे मोटर का विधुत चुम्बकीय टाॅर्क बढ जाता है और लोड टाॅर्क कम हो जाता है जिससे मोटर की गति बढ़ जाती है।

(2) आर्मेचर प्रतिरोध को नियंत्रित करके

इस विधि का प्रयोग केवल मोटर की गति कम करने के लिए किया जाता है। क्योंकि मोटर बन के तैयार हो चुकी है। इसलिए इसके प्रतिरोध को कम नहीं किया जा सकता है। केवल बढाया जा सकता है। इस विधि में एक ब्राहा प्रतिरोध आर्मेचर में जोड़ देते है। जिससे आर्मेचर का प्रतिरोध बढ जाता है। आर्मेचर का प्रतिरोध बढ़ने से आर्मेचर धारा घट जाती है। जिससे विधुत चुम्बकीय टाॅर्क कम हो जाता है और लोड टाॅर्क बढ जाता है जिससे मोटर की गति कम हो जाती है।

(3) आर्मेचर वोल्टेज नियन्त्रण विधि

इस विधि का उपयोग भी केवल गति को कम करने के लिए किया जाता है। जब आर्मेचर वोल्टेज को कम करते है तो सप्लाई वोल्टेज भी कम हो जाता है। जिससे आर्मेचर धारा कम हो जाती है ‌‌। आर्मेचर धारा कम होने से विधुत चुम्बकीय टाॅर्क भी कम हो जाता है। लेकिन लोड टाॅर्क बढ जाता है और मोटर की गति कम हो जाती है।

डी सी सीरीज मोटर की गति नियंत्रित करने की विधियां

डी सी सीरीज मोटर बिना भार बहुत ख़तरनाक गति पर चलती है। क्योंकि इसका स्टार्टिगं टाॅर्क बहुत उच्च होता है। इसकी गति को नियंत्रित करने के लिए इसकी फिल्ड वाइंडिंग के समांतर में एक कम वैल्यू का प्रतिरोध जोड़ा जाता है। इस प्रतिरोध को डायवर्टर कहते है। जिससे फिल्ड वाइंडिंग की धारा कम हो जाती है। और उसका फ्लक्स भी कम हो जाता है। जिससे dc motor in hindi की गति बढ़ जाती है। 

फिल्ड वाइंडिंग की टैपिंग करके भी गति नियंत्रित कर सकते है। जब फिल्ड वाइंडिंग की टैपिंग कर देते है। तो टैपिंग का प्रयोग करने से फिल्ड वाइंडिंग के चक्करों की संख्या कम हो जाती है जिससे फ्लक्स कम हो जाता है और मोटर की गति बढ़ जाती है।

    डी सी मोटर के उपयोग

(1) सेपरेटली एक्साइटेड मोटर का उपयोग सर्वो मोटर, स्टीम रोलिंग यूनिट, पेपर मील, डिजल इलैक्ट्रिक कपलशन और शीप यानी जहाज आदि में उपयोग किया जाता है ।
(2) शंट मोटर का उपयोग ऐसी जगह किया जाता है जहां पर एक समान (constant) गति की आवश्यकता होती है जैसे लेंथ मशीन, सेंट्रीफ्यूगल पम्प, फैन, ब्लोवर, रेसिप्रोकेटिगं पम्प, प्रीटिंग प्रेस आदि में किया जाता है ।
(3) सीरिज मोटर का उपयोग वहां किया जाता है जहां पर हाई स्टार्टिगं टाॅर्क की आवश्यकता होती है डी सी सीरीज मोटर का स्टार्टिगं टाॅर्क हाई होता है इसलिए इसका उपयोग ट्रेक्शन सिस्टम, क्रेन, हाइस्ट्स, कव्वेयर्स, इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव आदि में किया जाता है ।
(4) कम्यूलेटिव कम्पाउडं मोटर का उपयोग शेयर्स मशीन, पुंचेस मशीन, एलिवेटर, रोलिंग मील आदि में किया जाता है ।
(5) डिफरेंशियल कम्पाउडं मोटर का उपयोग कॉन्स्टेंट स्पीड एप्लिकेशन में किया जाता है जैसे एलिवेटर ओर एक्सीलेटर आदि में ।

भाईयों हमने इस लेख में dc motor in hindi से रिलेटेड ज्ञान को अर्जित किया है, उम्मीद करता हूं कि आपको मोटर से संबंधित यह जानकारी अच्छी लगी होंगी। इस पोस्ट कमेंट करके अपनी राय जरुर दिजियेगा।





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