सिंगल फेज इंडक्शन मोटर
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर एक सिंगल फेज सप्लाई पर चलने वाली मोटर होती है इस मोटर की बनावट भी थ्री फेज इंडक्शन मोटर के जैसी ही होती है। लेकिन यह मोटर थ्री फेज इंडक्शन मोटर की तरह सेल्फ स्टाॅर्ट नहीं होती है। सिंगल फेज इंडक्शन मोटर को सेल्फ स्टाॅर्ट बनाने के लिए इसमें अलग से एक वाइंडिंग को स्थापित किया जाता है। इस वाइंडिंग को स्टार्टिंग वाइंडिंग या आक्जेलरी वाइंडिंग कहते है। सिंगल फेज इंडक्शन मोटर, थ्री फेज इंडक्शन मोटर की अपेक्षा कार्य करने में अधिक श्रेष्ठ नहीं होती है। फिर भी घरेलू और औधौगिक क्षेत्रो में सिंगल फेज इंडक्शन मोटर का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है। निचे काफी सारी सारे इंडक्शन मोटर के प्रकार को दिखाया गया है
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की संरचना
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की संरचना, थ्री फेज इंडक्शन मोटर के लगभग समान होती है, लेकिन कुछ पहलू ऐसे अवश्य है जो सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की संरचना को थ्री फेज इंडक्शन मोटर की संरचना से पृथक करते है। इन्ही पहलुओं को यहां पर स्पष्ट किया गया है जो निम्न प्रकार है।
• सिंगल फेज इंडक्शन मोटर का रोटर स्काइरल केज टाइप होता है, जबकि थ्री फेज इंडक्शन मोटर का रोटर स्काइरल केज टाइप और फेज वाउण्ड टाइप दोनों प्रकार का होता है।
• सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की स्टेटर पर केवल एक या दो सिंगल फेज वाइंडिंग होती है, जबकि थ्री फेज इंडक्शन मोटर के स्टेटर पर तीन अलग-अलग कुण्डलियों की थ्री फेज वाइंडिंग होती है।
• कुछ सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की स्टेटर वाइंडिंग में अपकेन्द्री स्विच लगा होता है, जो मोटर के स्टार्ट हो जाने के बाद उसकी स्टार्टिंग वाइंडिंग या आक्जेलरी वाइंडिंग को सप्लाई वोल्टेज से अलग कर देता है, जबकि थ्री फेज इंडक्शन मोटर में ऐसा कुछ नहीं होता है।
• सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की स्टेटर वाइंडिंग में केवल दो या चार सिरे बाहर निकलकर टर्मिनल बोक्स में आते है। और थ्री फेज में छः सिरे बाहर निकलकर टर्मिनल बोक्स में आते है।
• 1- फेज इंडक्शन मोटर की संरचना आंशिक अश्व शक्ति क्षमता में की जाती है जिसे स्मोल मोटर का नाम दिया जाता है, जबकि थ्री फेज की संरचना पूर्ण अश्व शक्ति क्षमता में की जाती है, जिसे लार्ज मोटर का नाम दिया जाता है।
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर में घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र का उत्पादन या जनन
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की स्थाता कुण्डलन को जब ज्यावक्रीय एकल कला प्रत्यावर्ती प्रदाय वोल्टेज की जाती है तो मोटर की स्टेटर वाइंडिंग में ए प्रत्यावर्ती विधुत धारा प्रवाहित होने लगती है जिसके कारण मोटर की कुण्डली में एक प्रत्यावर्ती फ्लक्स ऊत्पन्न होता है। इसी कारण इसमे चुम्बकीय क्षेत्र की प्रकृति स्पंदनीय होती है। इसलिए इसे स्पंदनीय (pulsating) चुम्बकीय क्षेत्र भी कहते है। इससे एक स्पंदनीय या प्रत्यावर्ती बलाघूर्ण ऊत्पन्न होता है इस टाॅर्क का प्रारंभिक मान शून्य होता है इसलिए यह मोटर को स्टार्ट करने में असमर्थ होता है। मोटर को केवल घूर्णी टाॅर्क ही स्टार्ट कर सकता है इसलिए यदि मोटर के रोटर को किसी भी दिशा में किसी बाहरी स्त्रोत से घुमा दिया जाए, तो मोटर उसी दिशा में घुमना चालू कर देता है ऐसा इसलिए होता है, रोटर के घुमने से रोटर के अन्दर घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र ऊत्पन्न हो जाता है जो घूर्णी टाॅर्क उत्पन्न करता है। यह चुम्बकीय क्षेत्र दो सिध्दांतों के द्वारा उत्पन्न होता है।
क्रुश क्षेत्र सिध्दांत (cross field theory)
पहले चित्र में स्टेटर की वाइंडिंग में प्रवाहित विधुत धारा से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र और इसके परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र को दिखाया गया है।
दुसरे चित्र में स्टेंड स्टील अवस्था पर रोटर की वाइंडिंग में परिणामित्र क्रिया द्वारा प्रेरित स्थैतिक विधुत वाहक बल के कारण प्रवाहित धारा से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र और इसके परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र को दिखाया गया है। जो स्टेटर के परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के विपरित है। इस प्रकार इन दोनों परिणामी चुम्बकीय क्षेत्रों के बीच का कोण 180 अंश है। इस स्थिति में मोटर के अन्दर टाॅर्ट ऊत्पन्न नहीं होता और मोटर स्टार्ट नहीं होती है।
तिसरे चीत्र के अनुसार अब यदि रोटर को किसी बाहरी स्त्रोत द्वारा दक्षिणावर्त दिशा में थोड़ा सा घुमा दिया जाए, तो रोटर द्वारा स्टेटर फील्ड कट जाता है जिससे रोटर की वाइंडिंग में एक अन्य गतिक विधुत वाहक बल उत्पन्न हो जायेगा, जो पूर्व परिणामित्र क्रिया द्वारा प्रेरित स्थैतिक विधुत वाहक बल से भिन्न होगा। इस गतिक विधुत वाहक बल के कारण, रोटर वाइंडिंग में प्रवाहित धारा से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र और इसके परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र को तिसरे चीत्र में दिखाया गया है जो स्टेटर के परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत है। इसे घूर्णक का क्रुश चुम्बकीय क्षेत्र कहते है। इसी के कारण रोटर पर अधिकतम टाॅर्क लगता है और मोटर घूमने लगता है।
द्वि परिक्रमण क्षेत्र सिध्दांत (double revolving field theory)
परिक्रामी क्षेत्र सिंद्धान्त के अनुसार, सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की स्टेटर वाइंडिंग में धारा के कारण उत्पन्न प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र को दो समान घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र के घटकों में विभाजित किया जा सकता है, जिसमें प्रत्येक का आयाम प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र के आयाम का आधा होता है, जो एक दूसरे के विपरित दिशाओं में समान तुल्यकाली गति से समान रूप से घूमते हैं
अब यदि मोटर के रोटर को किसी भी दिशा में किसी बाहरी स्त्रोत से घुमा दिया जाए, तो उसी दिशा में मोटर की सर्पी घटती जाती है और बलाघूर्ण बढता जाता है जिससे मोटर की गति उसी दिशा में बढती जायेगी और मोटर घूमने लगेगी।
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर को सेल्फ स्टाॅर्ट बनाना
हम जानते है कि सिंगल फेज इंडक्शन मोटर सेल्फ स्टाॅर्ट नहीं होती है। इस कमी को दूर करने के लिए इसे स्वप्रवर्ती बनाया जाता है। इसके लिए इसे स्टार्टिंग के समय, अस्थायी रूप से डबल फेज मोटर बनाया जाता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसके स्थाता पर मुख्य कुण्डलन या धावी कुण्डलन के साथ एक अतिरिक्त कुण्डलन स्थापित की जाती है, जिसे सहायक कुण्डलन या आरम्भिक कुण्डलन कहते हैं। ये दोनों वाइंडिंग स्टेटर पर 90 डिग्री पर स्थापित की जाती है और दोनों वाइंडिंग को समांतर में जोड़कर सिंगल फेज सप्लाई वोल्टेज दी जाती है।
मुख्य और सहायक वाइंडिंग को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि इनमें प्रवाहित होने वाली धाराओं के मध्य कलान्तर अत्यधिक हो। इस प्रकार से यह सिंगल फेज इंडक्शन मोटर, डबल फेज इंडक्शन मोटर की तरह कार्य करती है और इसमें दोनों वाइंडिंगों की धाराओं द्वारा द्वि कला घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र ऊत्पन्न होता है जो घूर्णी टाॅर्क उत्पन्न कर, मोटर को सेल्फ स्टाॅर्ट बनाता है।
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर की स्टार्टिंग
सिंगल फेज इंडक्शन मोटर एक फ्रिक्शनल हाॅर्स पावर मोटर होती है जो कि बहुत ही कम क्षमता की मोटर होती है, जो स्टार्टिंग के समय पर सप्लाई स्त्रौत से बहुत कम धारा लेती है। इसकी स्टेटर वाइंडिंग बारीक वायर काॅयल की बनी होती है,जिसका प्रतिरोध अत्यधिक होता है। इसके अन्दर प्रयुक्त रोटर स्काइरल केज टाइप होता है, जिस पर लघुपथित बार कुण्डलन स्थापित रहती है,जो उच्च धारा के लिए बनी हुई होती है। इसलिए इसके स्टार्टिंग के लिए किसी भी स्टार्टर की आवश्यकता नहीं होती है। यह डायरेक्टर ओन लाइन स्टार्टर होती है,जिसे पूर्ण वोल्टेज स्टार्टिंग मैथड़ कहते हैं।
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