प्रकाश कार्यों के लिए आज कल प्रतिदिप्त ट्यूब का प्रयोग बढता जा रहा है, क्योंकि इसका वैधुत खर्च प्रति कैण्डल शक्ति बहुत कम है। यहां पर इस लेख में हम प्रतिदिप्ति ट्यूब का कार्य सिद्धान्त को समझेगे ओर जानेंगे कि इसका उपयोग कहां किया जाता है, कैसे ये काम करती है।
यह एक चार फिट तक लम्बी ट्यूब होती है जिसके अन्दर की सतह पर प्रतिदिप्ति चूर्ण या फास्फर का लेप किया जाता है। ट्यूब के अन्दर थोड़ी मात्रा में आर्गन गैस, मर्करी के साथ भरी होती है। ट्यूब के दोनों सिरों पर इलैक्ट्रोड ऊत्सर्जित करने वाले सर्पील तन्तु होते है। जो कि टंगस्टन के कुण्डलित तन्तु होते है और बेरियम और स्टान्शियम आॅक्साइड के मिश्रण से लेपित होते है। जिससे ऊत्सर्जन थोडा कम होने पर अधिक मात्रा में इलैक्ट्रोन ऊत्सर्जित हो सकें। प्रत्येक इलैक्ट्रोड के साथ दो धातु प्लेट लगी होती है जो कि तन्तु के दोनों सिरों पर लगी रहती है। यह प्लेट ऐनोड का कार्य करती है इलैक्ट्रोडों द्वारा अर्ध चक्र के दौरान, जब इलैक्ट्रोड धनात्मक होता है, उस समय यह बम्बारमैन्ट को सह सकती है। दूसरे अर्ध चक्र में निकटवर्ती गर्म तन्तु कैथोड का काम करता है और इलैक्ट्रोन ऊत्सर्जित करता है। प्रतिदिप्ति ट्यूब स्वचालित नहीं होता है इसलिए इसे स्टार्ट करने के लिए स्टार्टर की आवश्यकता होती है, इसमें दो प्रकार के स्टार्टर स्विच प्रयोग किये जाते हैं।
• ग्लो प्ररूपि स्टार्टर स्विच
• थर्मल स्टार्टर स्विच
प्रतिदिप्ति ट्यूब का कार्य सिद्धान्त

जब प्रतिदिप्ति ट्यूब के परिपथ में विधुत सप्लाई प्रदान की जाती है, तो स्टार्टर के दोनों इलैक्ट्रोडों के मध्य ग्लो विसर्जन के कारण एक लघु धारा प्रवाहित होती है। इस लघु धारा के कारण स्टार्टर के इलैक्ट्रोड की यू आकार की द्वि धातु पत्ती गर्म होकर फैलती है और दोनों इलैक्ट्रोड आपस में मिल जाते हैं अर्थात ट्यूब के तन्तु स्टार्टर परिपथ द्वारा लघुपथित हो जाते हैं। जिससे इलैक्ट्रोड के द्वारा बहुत उच्च धारा प्रवाहित होती है, जो कि इलैक्ट्रोडों को उद्दीपन कर देती है और ट्यूब की गैस आयनित हो जाती है। एक या दो सैकेंड पश्चात् स्टार्टर की द्वि धातु पत्ती खुद ही ठण्डी पढ़ जाती है और स्टार्टर का स्विच खुल जाता है और इस प्रकार धारा के एक दम घटने से चोक में 800 से 1000 वोल्ट का विधुत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। यह परिणामी उच्च वोल्टेज का हिल्लोल इलैक्ट्रोडों के मध्य आर्गन गैस को आयनित करने के लिए प्रर्याप्त होता है। ट्यूब में ऊत्पन्न ताप के कारण मर्करी वाष्पित हो जाती है और ट्यूब के पार्श्व में वोल्टेज घटकर 100 से 110 वोल्ट के बीच रह जाती है। यह विभवान्तर स्टार्टर में दौबारा ग्लो विसर्जन ऊत्पन्न करने के लिए पर्याप्त नहीं होता जबकि और इस प्रकार ट्यूब में सामान्य क्रिया होती रहती है।
प्रतिदिप्ति ट्यूब में चोक का काम
प्रतिदिप्ति ट्यूब में इस्तेमाल होने वाली चोक विधुत रोधी तार द्वारा पटलित लौह क्रोड पर कुण्डलित एक उच्च प्रतिघात वाली कुण्डली होती है। जिसमें प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित होने पर उच्च स्वं प्रेरण ऊत्पन्न होता है इसके निम्न कार्य होते है।
• यह इलैक्ट्रोड का पूर्ण तापन करता है ताकि मुक्त इलैक्ट्रोनों के प्रवाह के लिए उच्च धारा प्राप्त हो सकें।
• इलैक्ट्रोनों के मध्य आर्क को ऊत्पन्न करने के लिए यह अपेक्षाकृत अधिक वोल्टेज ( 800 से 1000 वोल्ट ) तक का हिल्लोल देता है।
• यह ट्यूब के लिए पहले से निश्चित आर्क धारा को बढ़ने से रोकता है।
क्या प्रतिदिप्ति ट्यूब को दिष्ट धारा पर प्रयोग किया जा सकता है?
उत्तर- प्रतिदिप्ति ट्यूब मौलिक रूप से एक प्रत्यावर्ती धारा लैम्प है, लेकिन फिर भी इसको डी सी सप्लाई पर उपयोग किया जा सकता है। यदि ए सी सप्लाई उपलब्ध न हो, तब इसको डी सी धारा पर प्रयोग किया जाता है और वोल्टेज का शीखर मान प्राप्त न होने के कारण लैम्प स्टार्टिंग में प्रत्यावर्ती धारा की अपेक्षा बहुत कठिनाई आती है और इसके लिए विशेष स्टार्टिंग युक्तियां प्रयोग की जाती है। चोक की जगह, चोक के सीरीज में एक प्रतिरोध लगाना पड़ता है और मैनुअल प्रतिवर्ती स्विच भी लगाना पड़ता है।
जब प्रतिदिप्ति ट्यूब को दिष्ट धारा पर प्रयोग किया जाता है, तब इसका एक सिरा कुछ घंटे जलने से बाद मन्द हो जाता है। इसका कारण इलैक्ट्रोनों का एक दिशा में क्रियाशील होना है। कुछ समय बाद विशेष प्रतिवर्ती स्विच द्वारा धारा प्रवाह की दिशा बदल कर ( दिन में एक बार या जब आवश्यक समझे ) ट्यूब के सिरों को मन्द होने से बचाया जा सकता है।
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