प्रत्यावर्ती धारा क्या है
आज की हमारी इस पोस्ट में हम पढ़ने वाले हैं, प्रत्यावर्ती धारा क्या होती है इसका वर्ग माध्य मूल मान, शिखर मान, आवर्त काल, आवृत्ति और प्रत्यावर्ती वोल्टेज के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। अगर आप ac current in hindi से रिलेटेड ज्ञान प्राप्त करना चाहते है तो आप एक सही वेबसाइट और सही पोस्ट पर आये है। यहां पर आपको बहुत ही आसान तरीके से प्रत्यावर्ती धारा के बारे में समझाया जायेगा, जिससे आप इसको समझकर दूसरों को भी आसानी से समझा सकते हैं।तो सबसे पहले हम प्रत्यावर्ती धारा की परिभाषा को जान लेते है।
प्रत्यावर्ती धारा की परिभाषा
प्रत्यावर्ती धारा एक ऐसी धारा होती है जो समय के साथ अपने मान को आवर्त रूप से बदलतीं रहतीं हैं, और एक निश्चित समय अंतराल के बाद ( 360 डिग्री पूरा करने के बाद) दौबारा से अपने प्रारंभिक मान से चलना शुरू करती है, एसी धारा को प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं।
प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान
ac current का एक चक्कर 360 डिग्री का होता है और इस एक चक्कर के अन्दर यह दो बार अपने अधिकतम मान पर पहुंचती है। पहले आधे cycle में इसका धनात्मक अधिकतम मान होता है और दूसरे आधे चक्र में इसका शिखर मान ऋणात्मक होता है। पहले आधे चक्र में शिखर मान 90 डिग्री पर प्राप्त होता है और दूसरे आधे चक्र में अधिकतम मान 270 डिग्री पर मिलता है इस प्रकार प्रत्यावर्ती धारा का हमे एक cycle में दो बार शिखर मान प्राप्त होता है।
प्रत्यावर्ती धारा का आवर्तकाल
प्रत्यावर्ती धारा एक चक्कर पूरा करने में जितना समय लेती है, उसे उसका आवर्त काल (time period) कहते हैं। इसको अंग्रेजी अक्षर कैपीटल T से प्रर्दशित किया जाता है और इसका मात्रक सेकेण्ड(sec) होता है।
प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज का आवर्त काल (T) = प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज को एक चक्कर घूमने में लगा समय
T = 2π/w
w = कोणीय वेग
क्योंकि प्रत्यावर्ती वोल्टेज का समीकरण V = Vm sin (wt) और प्रत्यावर्ती धारा समीकरण I = Im sin (wt) में t के स्थान पर (t+2π/w) रखने पर वोल्टेज और धारा में कोई बदलाव नहीं आता, अर्थात् प्रत्येक 2π/w समय के बाद दुबारा से पहला चक्र शुरू हो जाता है यही समय प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज का आवर्त काल कहलाता है।
अब हम प्रत्यावर्ती धारा के आवर्त काल को एक कुण्डली की सहायता से समझेंगे। जितने समय में चुम्बकीय क्षेत्र में घूमती हुई कुण्डली एक चक्कर पूरा करती है, ठीक उतने ही समय में इस कुण्डली से जुड़े परिपथ में उत्पन्न विधुत वाहक बल और धारा पहले एक दिशा में शून्य से अधिकतम और अधिकतम से शून्य हो जाती है। फिर विपरित दिशा में शून्य से अधिकतम और अधिकतम से शून्य हो जाती है। यह प्रक्रिया प्रत्यावर्ती धारा का एक चक्कर कहलाती है।
प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति
प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज एक सेकेंड में जितने चक्कर पूरे करती है, उसे उसकी आवृत्ति कहते हैं। या फिर इसकी परिभाषा हम ऐसे भी दे सकते है कि प्रत्यावर्ती धारा के आवर्त काल के व्यूत्क्रमानुपाती को आवृत्ति कहते हैं। इसको अंग्रेजी अक्षर स्मोल f से प्रदर्शित किया जाता है और इसका मात्रक हर्टज(Hz) चक्कर प्रति सेकेण्ड होता है। यदि ac धारा या वोल्टेज का आवर्त काल T है तो, उसकी आवृत्ति
f = 1/T
f = w/2π
w को प्रत्यावर्ती धारा या वोल्टेज की कोणीय आवृत्ति भी कहते है इसका मात्रक रेडियन प्रति सेकेण्ड होता है।
घरेलू उपयोग में आने वाली प्रत्यावर्ती वोल्टेज या धारा की आवृत्ति 50 चक्कर प्रति सेकेण्ड या 50 हर्टज होती है और इसकी कोणीय आवृत्ति 314 रेडियन प्रति सेकेण्ड होती है।
प्रत्यावर्ती धारा का तात्क्षणिक मान
प्रत्यावर्ती धारा के समीकरण में किसी समय t पर जो धारा का मान होता है, उसे तात्क्षणिक मान कहते हैं। जैसे जैसे t का मान बदलता जाता है वैसे वैसे प्रत्यावर्ती धारा का तात्क्षणिक मान भी बदलता है।
प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टेज और धारा में कलान्तर
ac current circuit में वोल्टेज और धारा की आवृत्ति समान होती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि ये दोनों एक ही फेज में हो। यह देखा गया है कि जब परिपथ में वोल्टेज अधिक होती है तो धारा अधिक नहीं होती और उस समय हम कहते है कि दोनों के बीच कलान्तर है। इस कलान्तर का मान परिपथ की प्रकृति पर निर्भर करता है, कलान्तर इस बात पर निर्भर करता है कि परिपथ में ओमीय प्रतिरोध, प्रेरकत्व और धारिता में से कौन सा कारक मोजूद है या इनका कौन-सा संयोग उपस्थित है। कुछ परिपथों में वोल्टेज अधिकतम होने से पहले ही धारा का मान अधिकतम हो जाता है। तब यह कहा जाता है कि धारा, वोल्टेज से कला में अग्रगामी है या वोल्टेज, धारा से कला में पश्चगामी है। यह सब जानकारी हम ac current in hindi के बारे में प्राप्त कर रहे हैं।
औसत मान (avarage value)
ac current in hindi प्रत्यावर्ती धारा पूरे एक चक्कर के अन्तर्गत पहले आधे चक्र में एक दिशा में और बचे हुए आधे चक्र में विपरित दिशा में प्रवाहित होकर अधिकतम मान को प्राप्त करती है। दोनों आधे भागों में परिवर्तन समान होता है, यानी पूरे एक चक्कर के लिए प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होता है, परन्तु किसी आधे चक्र के लिए इसका औसत मान शून्य नहीं होता। आधे चक्र के लिए औसत मान 2Im/π=0.637 Im होता है।
यही कारण है कि किसी चल कुण्डली धारामापी में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित करने पर उसकी सुई में कोई भी हलचल नहीं होती। वास्तव में धारामापी की सुई को ac current के आधे चक्र में, बायी ओर को तथा अगले आधे चक्र में दायी ओर को धक्का लगना चाहिए। यदि धारा की आवृत्ति 50 चक्कर प्रति सेकेण्ड है तो सुई को एक सेकेंड में 100 बार बायी ओर से दायी ओर तथा दायी ओर से बायी ओर जाना होगा। सुई अपने जडत्व के कारण ऐसा नहीं कर सकती, इसलिए वह स्थिर ही बनी रहती है।
ac current in hindi का वर्ग माध्य मूल मान
प्रत्यावर्ती धारा के पूरे एक चक्कर के लिए धारा के वर्ग के औसत मान के वर्गमूल को, इसका वर्ग माध्य मूल मान कहते हैं। इसे Irms से प्रर्दशित किया जाता है।प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान दिष्ट धारा के उह मान के बराबर होता है जिससे किसी प्रतिरोध तार में एक सेकेंड में उतनी ही ऊष्मा ऊत्पन्न होती है जितनी ac current द्वारा उत्पन्न होती है। इसको धारा का प्रभावी मान या आभासी मान भी कहते है।
ac current in hindi के समीकरण I = Im sin (wt) का वर्ग माध्य मूल मान Irms = Im/√2 होता है।
वर्ग माध्य मूल मान के प्रशन को हल कैसे करें- इसको हल करने के लिए सबसे पहले उस प्रशन का वर्ग करते है वर्ग करने पर जो मान प्राप्त होता है फिर उसका औसत मान निकालते हैं। अब जो मान हमे प्राप्त हुआ है इसका वर्गमूल करते है। इस तरह से हमें उस प्रशन का वर्ग माध्य मूल मान प्राप्त हो जाता है।
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